वर्तमान भारतीय ग्रामीण समाज में दलितों की शिक्षा एवं विकास पर समाजशास्त्रीय विश्लेषण

लेखक

  • डॉ0 योगेश कुमार त्रिपाठी असिस्टेंट प्रोफेसर (अतिथि), समाजशास्त्र विभाग, महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय, आजमगढ़ (उ0प्र0) ##default.groups.name.author##
  • डॉ0 कमल कश्यप भास्कर रामनगर, शंकरगंज, जौनपुर (उ0प्र0) ##default.groups.name.author##
  • नितेश कुमार मौर्य शोध छात्र, शिक्षाशास्त्र विभाग,राजकीय महिला महाविद्यालय, अहिरौला, आजमगढ़ (उ0प्र0) ##default.groups.name.author##

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https://doi.org/10.71126/nijms.v1i3.23

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दलित##common.commaListSeparator## ग्रामीण शिक्षा##common.commaListSeparator## सामाजिक समानता##common.commaListSeparator## आरक्षण##common.commaListSeparator## विकास

सार

भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों की ’शिक्षा एवं विकास’ हमेशा से एक जटिल व चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है। ऐतिहासिक रूप से दलितों को समाज के अन्य हिस्सों से ’’भेदभाव और असमानता’’ का सामना करना पड़ा है, जो उनके ’शैक्षिक’ व ’आर्थिक’ विकास में महत्वपूर्ण बाधा है। इस शोध-पत्र का उद्देश्य भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में ’दलितों के शिक्षा’ एवं ’विकास की समस्याओं’ का विश्लेषण करना है तथा साथ ही उनके समाधान के लिए उपयुक्त उपायों को प्रस्तावित करना है। भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों के लिए ’शिक्षा की गुणवत्ता’, ’अवसर’ एवं ’संसाधनों की कमी’ सबसे बड़ी चुनौती है। साथ ही, ’सामाजिक भेदभाव’, ’उच्च जातियों का हस्तक्षेप’ एवं ’अभावग्रस्त परिवेश’ भी इनके शिक्षा के मार्ग में अवरोधक बनते हैं। इसके बावजूद, सरकार ने ’आरक्षण’, ’शिक्षा योजनाओं’ व अन्य कल्याणकारी नीतियों के जरिए सुधार लाने की कोशिश की है। हालांकि, इन योजनाओं का सही माध्यम से क्रियान्वयन और दलित समुदायों तक इनका पहुंचना एक बड़ी समस्या है। निष्कर्ष यह है कि ’’शिक्षा के क्षेत्र में दलितों को समान व सुलभ अवसर देने के लिए नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन, समाज में बदलाव और समानता की भावना को बढ़ावा देना आवश्यक है’’।

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प्रकाशित

2025-01-31