भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षक की भूमिका

Authors

  • कृष्ण कुमार यादव शोध छात्र, शिक्षा एवं प्रशिक्षण विभाग, चौधरी चरण सिंह डिग्री कालेज, हेवरा, इटावा Author
  • प्रोफे नीति प्रोफेसर, शिक्षा एवं प्रशिक्षण विभाग, चौधरी चरण सिंह डिग्री कालेज, हेवरा, इटावा Author

Abstract

प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षक (गुरु) की भूमिका केवल ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह एक व्यापक और बहुआयामी दायित्व था जो शिष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास को समाहित करता था। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक, गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला रही है। यह शोध भारतीय दर्शन, धर्म, और सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में शिक्षक की बहुमुखी भूमिका का विश्लेषण करता है। वैदिक साहित्य में गुरु को 'गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः' कहकर परम पूजनीय माना गया है। उपनिषदों में गुरु को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला बताया गया है। गुरुकुल प्रणाली में शिक्षक न केवल विषय विशेषज्ञ था, बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शक, चरित्र निर्माता, और जीवन शैली का प्रेरणास्रोत भी था। भारतीय परंपरा में शिक्षक की प्रमुख भूमिकाएं हैं: ज्ञान प्रदाता, चरित्र निर्माता, आध्यात्मिक गुरु, सामाजिक सुधारक, और सांस्कृतिक संरक्षक। गुरु-शिष्य संबंध में पारस्परिक श्रद्धा, विश्वास, और आजीवन निष्ठा के सिद्धांत निहित हैं। यह परंपरा व्यक्तिगत शिक्षा, मौखिक परंपरा, और अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित थी। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी इन मूल्यों की प्रासंगिकता निर्विवाद है। समकालीन शिक्षा नीतियों में गुरु-शिष्य परंपरा के तत्वों को अपनाने की आवश्यकता है ताकि शिक्षा केवल सूचना स्थानांतरण न रहकर व्यक्तित्व विकास का माध्यम बने।

बीज शब्द: गुरु-शिष्य परंपरा, शिक्षक की भूमिका, गुरुकुल प्रणाली, भारतीय ज्ञान परंपरा, गुरुकुल प्रणाली ।

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Published

2025-03-05

How to Cite

भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षक की भूमिका. (2025). Naveen International Journal of Multidisciplinary Sciences (NIJMS), 1(4), 44-48. https://nijms.com/index.php/nijms/article/view/62