माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की पर्यावरण के प्रति जागरुकता का तुलनात्मक अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.71126/nijms.v1i4.44Abstract
हमारी पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत लगभग 350 वर्ष पूर्व मानी जाती है। कालान्तर में यहाँ विभिन्न प्रकार की जीव-जातियों और वनस्पतियों की उत्पत्ति और पतन होता रहा है। पेड़-पौधों और जन्तुओं के विकास के इसी क्रम में इस समय से लगभग डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व मानव की उत्पत्ति हुई। प्रकृति विभिन्न जन्तुओं सहित मनुष्य के बीच उचित अनुकूलन बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहती है। प्रकृति के पेड़-पौधों और जन्तुओं के बीच पारस्परिक सम्बन्ध आपस में अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। पेड़-पौधे, जन्तुओं को आवास एवं भोजन देते हैं। पशु-पक्षी एवं कीट-पतंगे, पुष्पों के परागण में मदद करते हैं। इस प्रकार प्रकृति पेड़-पौधों और जन्तुओं के बीच अनोखा संतुलन प्राचीन काल से बनाये हुये है। पिछले लगभग 150 वर्ष से मनुष्य ने प्रकृति के साथ छेड-छाड़ शुरु कर दी है जिससे प्रकृति के जैविक और अजैविक घटकों में असंतुलन होना शुरु हो गया है। आज का मनुष्य भौतिकवादी बन गया है। प्रत्येक मनुष्य भौतिकवादी जीवनशैली अपनाने को परेशान है। हमारे सामाजिक-आर्थिक मानदण्डों का आधार नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण हो गया है। आज हम वायु, जल, मृदा, भोजन एवं अन्य खाद्य पदार्थ सभी को प्रदूषित करके वातावरण को दूषित करते जा रहे हैं, परिणामस्वरूप पर्यावरण हमारा जीवनरक्षक न बनकर जीवनभक्षक बनता जा रहा है। वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रकृति का रूप असंतुलित होता जा रहा है। ये पर्यावरण में पाया जाने वाला असंतुलन पर्यावरण में उपस्थित सभी जीवों के जीवन के लिये महासंकट है। वर्तमान परिस्थितियों में मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति जागरुकता की नितान्त आवश्यकता है। इस शोध पत्र में शोधार्थी ने यह जानने का प्रयास किया है कि माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक पर्यावरण के प्रति कितने जागरुक हैं एवं वे अपने छात्रों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करने में कितना योगदान दे सकते हैं। इस शोध पत्र का उद्देश्य शिक्षकों द्वारा छात्रों को पर्यावरण के प्रति जागरुक बनाकर उनको पर्यावरण के संरक्षण में योगदान देने के लिए तैयार करना है।
मुख्य शब्द: पर्यावरण जागरुकता, शिक्षक, पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण संरक्षण।
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